Gaya ji pind dan
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At Gaya ji pind dan and tirth sthal, our mission is to spread love, hope and faith to everyone. We believe in creating a community of believers who can help each other through the power of prayer and support.
Performing Pind Daan in Gaya is considered highly auspicious because of the belief that Lord Rama himself performed the ritual here for his father, King Dasharatha, to help his soul attain salvation. It is also believed that Lord Vishnu himself resides in Gaya and blesses those who perform the Pind Daan with the desired results. Pind daan brings freedom to deceased those having a materialistic inclination and finding it difficult to leave the earth and their loved ones. It is believed that post pind daan souls are relived from the torchers of hell leading him/her to Moksha.
Relatives of the deceased offering pind daan receive the blessings by the soul, which is believed to have the strongest positive influence in ones life. Pind daan brings success, peace, and prosperity to peoples life. The importance of Pind Daan in Gaya lies in the belief that by performing this ritual, one can attain moksha or liberation for the departed souls of ancestors. According to Hindu mythology, it is believed that when a person dies, their soul wanders in the universe, and it is only after the Pind Daan that the soul is able to attain peace
Gaya ji pind dan and tirth sthal offers the best pind dan service at low cost. Visit our Hindu temple and feel a sense of peace and tranquility. we have many pandit ji available like telgu, tamil, bengoli, oddiya, marathi, sindhi, and many more and we provides pandit ji as per requirements. We offer a range of services for our members, Our services are designed to help you deepen your faith and connect with other believers.
Hear from our members about how Gaya ji pind dan and tirth sthal has impacted their lives. From finding hope in difficult times to making lifelong friends, our community has helped many people find their way back to faith.
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मै गया जी तीर्थ पुरोहित गया जी आने वाले सभी तीर्थ यात्रियों का ज्ञान एवं मोक्ष की भूमि में स्वागत है। मैं सभी हिन्दू सनातन धर्मा अभिलम्बियों को गया पितृ श्राद्ध एवं पूजा से सम्बंधित सभी कार्य को विधिवत मार्ग दर्शन देने के लिए पूर्णतया सन्नद्ध हूँ |
गया जी तीर्थ में पितरों के निर्मित होने वाले श्राद्ध , पित्तरों/पूर्वजों का पिंड दान, तर्पण, गया जी श्राद्ध, पितृ दोष निवारण पूजा, त्रिपिंडी श्राद्ध, कुंडली दोष, नारायणबलि श्राद्ध, पितृपक्ष श्राद्ध, अमावस्या श्राद्ध, वार्षिक श्राद्ध , तिथि श्राद्ध एवं गयातीर्थ विष्णुपद मंदिर में होने वाले कर्मकांड पूजनकर्म तुलसी अर्चना, ,रात्रि श्रृंगार पूजा, महापूजा,अभिषेक एवं गया जी में होने वाले का अन्य कई तरह का पूजा के लिए सेवा प्रदान करता हूं ।
गया तीर्थ में श्राद्ध तर्पण पिंडदान एक दिवसीय ,तीन दिवसीय ,पांच दिवसीय ,सात दिवसीय ,सत्रह दिवसीय करने का उल्लेख है ,जो कि शास्त्र सम्मत है ।
हमारे यहाँ ठहरने के लिए उत्तम प्रबन्ध है - धर्मशाला उपलब्ध कराये जाते है जो तीर्थ यात्रियों के लिए पूर्णत: नि:शुल्क है। अतः होटल, गेस्ट हाउस , सर्विस गाइड, वाहन व अन्य सेवाओं भी उपलब्ध कराये जाते है | हमारे यहाँ आने वाले व्यक्ति के लिये गया जी मे श्राद्ध करना उनके लिये मुक्ति का मार्ग प्रशश्त करना हमारा कर्तव्य है
यह हिंदुओं के लिए एक धार्मिक स्थान है, लाखों हिंदू हर साल पूजा के लिए और विशेष रूप से अपने पूर्वजो के पिंड दान के लिए यहां आते हैं। यहाँ आने वाले व्यक्ति के लिये गया जी मे श्राद्ध करना उनके लिये मुक्ति का मार्ग प्रशश्त करना हमारा कर्तव्य है, इस कार्य को विधिवत करने पर मृत व्यक्तियों को मोक्ष की प्राप्ति होती है ,वे सततः प्रसन्न होते है ,आशीर्वाद करते है और जिस से होने वाले कई तरह के तकलीफ से लोग दूर होते है अतः प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य होता हैं कि अपने पूर्वजों के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन सावधानी पूर्वक करें ।उनके आशीर्वाद से सफलता अवश्य प्राप्त होती है ।इसमें कोई संशय नही। मैं आपके गया जी होने वाले कार्यक्रम गया श्राद्ध एवं पितृ पूजा से सम्बंधित सभी कार्य को विधिवत मार्ग दर्शन देने के लिए तत्पर रहता हूँ |
बिहार की राजधानी पटना से करीब 104 किलोमीटर की दूरी पर बसा है गया जिला। धार्मिक दृष्टि से गया न सिर्फ हिन्दूओं के लिए बल्कि बौद्ध धर्म मानने वालों के लिए भी आदरणीय है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे महात्मा बुद्ध का ज्ञान क्षेत्र मानते हैं जबकि हिन्दू गया को मुक्तिक्षेत्र और मोक्ष प्राप्ति का स्थान मानते हैं। – इसलिए हर दिन देश के अलग-अलग भागों से नहीं बल्कि विदेशों में भी बसने वाले हिन्दू आकर गया में आकर अपने परिवार के मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना से श्राद्ध, तर्पण और पिण्डदान करते हैं। गया को मोक्ष स्थली का दर्ज़ा एक राक्षस गयासुर के कारण मिला है !
श्राद्ध की मूल कल्पना वैदिक दर्शन के कर्मवाद और पुनर्जन्मवाद पर आधारित है। कहा गया है कि आत्मा अमर है, जिसका नाश नहीं होता। श्राद्ध का अर्थ अपने देवताओं, पितरों और वंश के प्रति श्रद्धा प्रकट करना होता है। मान्यता है कि जो लोग अपना शरीर छोड़ जाते हैं, वे किसी भी लोक में या किसी भी रूप में हों, श्राद्ध पखवाड़े में पृथ्वी पर आते हैं और श्राद्ध व तर्पण से तृप्त होते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है। यूं तो देश के कई स्थानों में पिंडदान किया जाता है, परंतु बिहार के फल्गु तट पर बसे गया में पिंडदान का बहुत महत्व है।
ब्रह्माजी जब सृष्टि की रचना कर रहे थे उस दौरान उनसे असुर कुल में गया नामक असुर की रचना हो गई। गया असुरों के संतान रूप में पैदा नहीं हुआ था इसलिए उसमें आसुरी प्रवृति नहीं थी। वह देवताओं का सम्मान और आराधना करता था। उसके मन में एक खटका था। वह सोचा करता था कि भले ही वह संत प्रवृति का है लेकिन असुर कुल में पैदा होने के कारण उसे कभी सम्मान नहीं मिलेगा। इसलिए क्यों न अच्छे कर्म से इतना पुण्य अर्जित किया जाए ताकि उसे स्वर्ग मिले। गयासुर ने कठोर तप से भगवान श्री विष्णुजी को प्रसन्न किया। भगवान ने वरदान मांगने को कहा तो गयासुर ने मांगा। आप मेरे शरीर में वास करें। जो मुझे देखे उसके सारे पाप नष्ट हो जाएं। वह जीव पुण्यात्मा हो जाए और उसे स्वर्ग में स्थान मिले।
भगवान से वरदान पाकर गयासुर घूम-घूमकर लोगों के पाप दूर करने लगा। जो भी उसे देख लेता उसके पाप नष्ट हो जाते और स्वर्ग का अधिकारी हो जाता। इससे यमराज की व्यवस्था गड़बड़ा गई. कोई घोर पापी भी कभी गयासुर के दर्शन कर लेता तो उसके पाप नष्ट हो जाते। यमराज उसे नर्क भेजने की तैयारी करते तो वह गयासुर के दर्शन के प्रभाव से स्वर्ग मांगने लगता। यमराज को हिसाब रखने में संकट हो गया था। यमराज ने ब्रह्माजी से कहा कि अगर गयासुर को न रोका गया तो आपका वह विधान समाप्त हो जाएगा जिसमें आपने सभी को उसके कर्म के अनुसार फल भोगने की व्यवस्था दी है। ब्रह्माजी ने उपाय निकाला। उन्होंने गयासुर से कहा कि तुम्हारा शरीर सबसे ज्यादा पवित्र है इसलिए तुम्हारी पीठ पर बैठकर मैं सभी देवताओं के साथ यज्ञ करुंगा। उसकी पीठ पर यज्ञ होगा यह सुनकर गया सहर्ष तैयार हो गया। ब्रह्माजी सभी देवताओं के साथ पत्थर से गया को दबाकर बैठ गए। इतने भार के बावजूद भी वह अचल नहीं हुआ। वह घूमने-फिरने में फिर भी समर्थ था। देवताओं को चिंता हुई। उन्होंने आपस में सलाह की कि इसे श्री विष्णु ने वरदान दिया है इसलिए अगर स्वयं श्री हरि भी देवताओं के साथ बैठ जाएं तो गयासुर अचल हो जाएगा। श्री हरि भी उसके शरीर पर आ बैठे। श्रीविष्णु जी को भी सभी देवताओं के साथ अपने शरीर पर बैठा देखकर गयासुर ने कहा- आप सब और मेरे आराध्य श्री हरि की मर्यादा के लिए अब मैं अचल हो रहा हूं। घूम-घूमकर लोगों के पाप हरने का कार्य बंद कर दूंगा। लेकिन मुझे चूंकि श्री हरि का आशीर्वाद है इसलिए वह व्यर्थ नहीं जा सकता इसलिए श्री हरि आप मुझे पत्थर की शिला बना दें और यहीं स्थापित कर दें।
गया विधि के अनुसार श्राद्ध फल्गू नदी के तट पर विष्णु पद मंदिर में व अक्षयवट के नीचे किया जाता है। वह स्थान बिहार के गया में हुआ जहां श्राद्ध आदि करने से पितरों का कल्याण होता है। पिंडदान की शुरुआत कब और किसने की, यह बताना उतना ही कठिन है जितना कि भारतीय धर्म-संस्कृति के उद्भव की कोई तिथि निश्चित करना। परंतु स्थानीय पंडों का कहना है कि सर्व प्रथम सतयुग में ब्रह्माजी ने पिंडदान किया था। महाभारत के 'वन पर्व' में भीष्म पितामह और पांडवों की गया-यात्रा का उल्लेख मिलता है। श्रीराम ने महाराजा दशरथ का पिण्ड दान यहीं (गया) में किया था। गया के पंडों के पास साक्ष्यों से स्पष्ट है कि मौर्य और गुप्त राजाओं से लेकर कुमारिल भट्ट, चाणक्य, रामकृष्ण परमहंस व चैतन्य महाप्रभु जैसे महापुरुषों का भी गया में पिंडदान करने का प्रमाण मिलता है। गया में फल्गू नदी प्रायः सूखी रहती है। इस संदर्भ में एक कथा प्रचलित है।
भगवान श्री राम अपनी पत्नी सीताजी के साथ पिता दशरथ का श्राद्ध करने गयाधाम पहुंचे। श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री लाने वे चले गये। तब तक राजा दशरथ की आत्मा ने पिंड की मांग कर दी। फल्गू नदी तट पर अकेली बैठी सीताजी अत्यंत असमंजस में पड़ गई। माता सीताजी ने फल्गु नदी, गाय, वटवृक्ष और केतकी के फूल को साक्षी मानकर पिंडदान कर दिया।जब भगवान श्री राम आए तो उन्हें पूरी कहानी सुनाई, परंतु भगवान को विश्वास नहीं हुआ। तब जिन्हें साक्षी मानकर पिंडदान किया था, उन सबको सामने लाया गया। पंडा, फल्गु नदी, गाय और केतकी फूल ने झूठ बोल दिया परंतु अक्षयवट ने सत्यवादिता का परिचय देते हुए माता की लाज रख ली। इससे क्रोधित होकर सीताजी ने फल्गू नदी को श्राप दे दिया कि तुम सदा सूखी रहोगी जबकि गाय को मैला खाने का श्राप दिया केतकी के फूल को पितृ पूजन मे निषेध का। वटवृक्ष पर प्रसन्न होकर सीताजी ने उसे सदा दूसरों को छाया प्रदान करने व लंबी आयु का वरदान दिया।
तब से ही फल्गू नदी हमेशा सूखी रहती हैं, जबकि वटवृक्ष अभी भी तीर्थयात्रियों को छाया प्रदान करता है। आज भी फल्गू तट पर स्थित सीता कुंड में बालू का पिंड दान करने की क्रिया (परंपरा) संपन्न होती है। क्षेत्र का नाम गयासुर के अर्धभाग गया नाम से तीर्थ रूप में विख्यात होगा। मैं स्वयं यहां विराजमान रहूंगा। इस तीर्थ से समस्त मानव जाति का कल्याण होगा। साथ ही वहा भगवान "श्री विष्णुजी * ने अपने पेर का निशान स्थापित किया जो आज भी वहा के मंदिर मे दर्शनीय हे।
द्वापर युग में भी कुरू क्षेत्र में मारे लाखों लोगों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किए जाने का वर्णन मिलता है। वहीं महाभारत काल में भी पांडवों का दो बार गया आने का वर्णन मिलता है। वैसे तो गया धाम में 365 पिंडवेदियों पर पिंडदान और तर्पण करने का विधान है लेकिन कलान्तर में एक एक कर पिंडवेदियों के लुप्त हो जाने से 54 वेदियां ही बची है। इनमें गया श्राद्ध में अब तीन ही वेदियां फल्गु नदी का तट, विष्णुपद मंदिर तथा अक्षयवट में पिंडदान होता है। इसके अलावा सीताकुंड, रामशिला, प्रेतशिला, धर्मारण्य, रू कमिणी तालाब, वैतरणी तालाब समेत अन्य तालाबों पर भी पिंडदान किया जाता है।
श्राद्ध की मूल कल्पना वैदिक दर्शन के कर्मवाद और पुनर्जन्मवाद पर आधारित है। कहा गया है कि आत्मा अमर है, जिसका नाश नहीं होता। श्राद्ध का अर्थ अपने देवताओं, पितरों और वंश के प्रति श्रद्धा प्रकट करना होता है। मान्यता है कि जो लोग अपना शरीर छोड़ जाते हैं, वे किसी भी लोक में या किसी भी रूप में हों, श्राद्ध पखवाड़े में पृथ्वी पर आते हैं और श्राद्ध व तर्पण से तृप्त होते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है। यूं तो देश के कई स्थानों में पिंडदान किया जाता है, परंतु बिहार के फल्गु तट पर बसे गया में पिंडदान का बहुत महत्व है।
शपौराणिक मान्यताओं के अनुसार पृथ्वी पर तीन ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें पिंडदान के लिए सबसे उत्तम माना गया है। ये हैं: बद्रीनाथ का ब्रह्मकपाल क्षेत्र, हरिद्वार का नारायणी शिला क्षेत्र और बिहार का गया क्षेत्र। तीनों स्थान ही पितरों की मुक्ति के लिए महत्वपूर्ण स्थान हैं। लेकिन इनमें गया क्षेत्र का विशेष महत्व है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ स्थित हैं कुछ ऐसे दिव्य स्थान जहाँ पिंडदान करने से पूर्वजों को साक्षात भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उन्हें मुक्ति मिलती है। इसी गया क्षेत्र में स्थित है अतिप्राचीन विष्णुपद मंदिर जो सनातन के अनुयायियों में सबसे पवित्र माना गया है। इस मंदिर में स्थित हैं भगवान विष्णु के चरणचिह्न जिनके स्पर्श मात्र से ही मनुष्य के सभी पापों का नाश होता है। ये फल्गु महानदी के तट पर बसा हुआ अतिरमणीय , सर्वथा कल्याणकारी मोक्षदायनी पितृ मोक्ष तीर्थ गया जी के नाम से विश्वविख्यात है । फल्गु नदी के पश्चिम तट के दक्षिण मध्य में भगवान विष्णु नारायण का मंदिर (वेदी ) है ।
गर्भगृह में श्री विष्णुपाद की चरण प्रतिष्ठा है । फल्गु महानदी के पश्चिम किनारे पर बसा हुआ यह विशाल अति प्राचीन और परम पावन मंदिर पितरों के श्राद्ध का केंद्र रहा है । श्राद्ध कर्म की परंपरा हमारे सनातन भारतीय संस्कृति में अति प्राचीन है । जिसमे श्रेष्ठ जन धर्म का अनुपालन करते है और परम्परा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते है ।शास्त्रों के वचनानुसार यह परम्परा जितनी पुरानी है ,उतनी पुरानी गया जी व गया जी स्थित इस मंदिर (वेदी) का इतिहास ।
जब भगवान विष्णु के नाभिकमल ब्रह्मा जी उत्पन हुए और उन्होंने सृष्टि की ।उन्होंने आसुर भाव से असुर की तथा उदारभाव से देवताओं की उत्पत्ति की थी ।उन असुरों में महाबलवान ,पराक्रमी गयासुर हुआ । वह विशालकाय था शास्त्रों के मतानुसार इसका शरीर सवा सौ योजनों का था ,मोटाई साठ सहस्त्र योजनों की थी । वह भगवान विष्णु का परम भक्त था । कोलाहल पर्वत के सुन्दर गिरी स्थान पर उसने दारूण तपस्या की थी ।उसने अनेक सहस्त्र वर्षो तक अपने साँसे रोक स्थित रहा उसके दारूण तपस्या को देख देवगण बहुत संतप्त औऱ क्षुब्ध हुए ,अतः देवगणों ने ब्रह्मा जी के पास जाकर निवेदन किया कि गयासुर से हमलोगों की रक्षा कीजिये ,देवताओं की आर्तवाणी सुनकर ब्रह्मा जी ने सभी देवों से श्री महादेव के पास चलने को कहा - ब्रह्मा जी सहित सभी देव कैलाश महादेव के पास पहुँचे व महादेव से रक्षा हेतु प्रार्थना की तब महादेव ने सबों को श्रीहरि विष्णु जी के पास चलने को कहा सभी क्षीर सागर पहुचे भगवान विष्णु की स्तुति कर प्रार्थना की और रक्षा हेतु निवेदन किया ,श्री हरि ने आश्वासन दिया और सभी देवगण ब्रह्मा विष्णु महेश समेत गयासुर के पास पहुच गयासुर से कहा -गयासुर तुम यह तपस्या का कारण क्या है हम सन्तुष्ठ है अपनी इच्छा व्यक्त करो ,गयासुर सभी देवताओं को अपने समक्ष देख प्रार्थना की औऱ कहा कि अगर आप सन्तुष्ट है तो मेरी यह कामना है कि द्विजातियों ,यज्ञों ,तीर्थो ,पर्वर्तीय प्रांतो से भी यह मेरा शरीर पवित्र हो जाए ,तब श्रीहरि समेत सभी देवताओं ने कहा कि तुम अपनी इच्छा के अनुरूप ही पवित्रता का लाभ करो ।गयासुर के इस अद्भुत कार्य से तीनों लोक व यमपुरी सुनी हो गई । पुनः देवगणों की व्याकुलता बढ़ी गई ,और सभी वासुदेव के पास पहुँचे औऱ कहा - तीनो लोक सुना हो गया है तब वासुदेव ने कहा - आप लोग गयासुर का शरीर पर यज्ञ करने हेतु गयासुर से निवेदन करे ,गयासुर के पास पहुच सभी देवों ने ऐसी ही इच्छा प्रकट की तब गयासुर ने कहा -हे देव देवेश यदि आप हमारे शरीर पर यज्ञ करेगे तो हमारा पितृ कुल कृत्य कृत्य हो जाएगा ।आपने ही तो इतनी अपूर्व पवित्रता की प्रदान की है ।यह याग्य अवश्य सम्पन होगा ।
गयासुर के शरीर पर यज्ञ प्रारम्भ हुआ ,ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर यज्ञ सम्पन किया गया फिर सभी ने देखा कि यज्ञ भूमि यानी गयासुर का शरीर चलायमान हो रहा है तब ब्रह्मा जी धर्मराज को आदेश किया कि आपके यमपुरी में जो धर्मशीला है लाओ औऱ गयासुर के सिर पर स्थापित करो धर्मराज ने ऐसा ही किया परन्तु वह असुर शिला समेत विचलित हो गया ,तबब्रह्मा जी ने श्री विष्णु की प्रार्थना की और सारी घटनाए व्यक्त की ।तब श्री हरि विष्णु गयासुर के मस्तक पर रखी शिला के उपर स्वमेवभगवान जनार्दन ,पुंडरीकाक्ष गदाधर के रूप में अवस्थित हो गये तब गयासुर स्थिर हुआ और कहा -क्या मैं भगवान विष्णु के वचन मात्र से निश्चल न हो जाता मैं भगवान विष्णु के गदा द्वारा पीड़ित हो चुका हूं आप देव प्रसन्न रहे ,गयासुर के इन बातों से सब देव प्रसन्न हुए औऱ कहा -इच्छा अनरूप वर मांग लो तब गयासुर ने कहा -जब तक पृथ्वी का अस्तित्व है मेरे इस शरीर पर ब्रह्मा विष्णु महेश का निवास स्थान बना रहे ,इस क्षेत्र की प्रतिस्ठा मेरे नाम से हो ,गया क्षेत्र की मर्यादा पांच कोश की व गयासिर की मर्यादा एक कोश की हो इन दोनों के मध्य मानव हितकारी समस्त तीर्थो का निवास हो इस बीच मे स्नानदिकर तर्पण ,पिंडदान करने से महान फल प्राप्ति हो ,इस क्षेत्र में पिंडदान करने वाले मनुष्यो सहस्त्र कुलों का उद्धार हो ,आप लोग व्यक्त ,अव्यक्त रूप धारण कर इस शिला पर विरजमान रहे ऐसा वरदान आप लोग हमें प्रदान करें । देवताओं ने इस ही वर दिया और अपने निज स्थान को प्रस्थान हुए ।तब से गया श्राद्ध श्रेष्ठभूमि है और विष्णुपाद चिन्ह अवस्थित है ऐसा अन्यत्र कोई तीर्थ नही ।
मंदिर में कई युगों से भगवान विष्णु के चरणचिह्न अंकित हैं और पौराणिक काल से ही यहाँ तर्पण एवं पिंडदान का कार्य होता आ रहा है। लेकिन मंदिर का वर्तमान स्वरूप इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा दिया गया है। इस मंदिर का निर्माण जयपुर के कारीगरों ने काले ग्रेनाइट पत्थर को तराश कर किया है। मंदिर के गुंबद की जमीन से ऊँचाई लगभग 100 फुट है। इसके अलावा मंदिर का प्रवेश और निकास द्वार भी चाँदी का ही है।
विष्णुपद मंदिर के शिखर पर 50 किलोग्राम सोने का कलश स्थापित किया गया है। इसके अलावा मंदिर में 50 किग्रा सोने से बनी ध्वजा भी स्थापित है। इसके अलावा मंदिर के गर्भगृह में 50 किग्रा चाँदी का छत्र और 50 किग्रा चाँदी का अष्टपहल है।
मंदिर के गर्भगृह में स्थापित भगवान विष्णु के चरणचिह्नों में गदा, शंख और चक्र अंकित है। प्रतिदिन इन पदचिह्नों का श्रृंगार रक्त चंदन से किया जाता है। गया क्षेत्र में स्थित 54 वेदियों में से 19 वेदियाँ विष्णुपद मंदिर में ही स्थित हैं जहाँ पूर्वजों की मुक्ति के लिए पिंडदान किया जाता है। इन 19 वेदियों में से 16 वेदियाँ अलग हैं और तीन वेदियाँ रुद्रपद, ब्रह्मपद और विष्णुपद हैं |
विष्णु सहस्र नामों के साथ तुलसी पुष्प अर्चना - इस पूजन में विष्णु सहस्रनाम से श्री नारायण विष्णुपाद के चरण पर तुलसी दल अर्पित किया जाता है । भगवान विष्णु को तुलसी चढ़ाने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि और वैभव बढ़ता है। भगवान विष्णु को तुलसी बेहद प्रिय है। तुलसी को अर्पित करके भगवान विष्णु को प्रसन्न किया जा सकता है। कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी को तुलसी की पूजा करने से जिन लोगों की शादी में रुकावटें आ रही हैं वो दूर होती हैं। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा को भगवान विष्णु को तुलसी चढ़ाने का फल दस हज़ार गोदान के बराबर माना गया है।
जल\दूध अभिषेक - इस पूजन में भगवान के चरणों पर वैदिक मंत्रों के द्वारा जल, दूध व पूजन समाग्री को अर्पित कर ,सुख शांति समृद्धि ,परिवार के संतति के लिये प्रार्थना की जाती है यह वैदिक पौराणिक पूजन की विशिष्ट पद्धति है । वैशाख मास ,कार्तिक मास ,अगहन मास ,माघ मास में यह पूजन ,अभिषेक करना अनंत फलदायी होता है ।
श्रृंगार पूजन - रात्रि श्रृंगार पूजन करने से भगवन विष्णु आशीर्वाद प्रदान करते है श्रृंगार पूजन से भगवन विष्णु को प्रसन किया जाता है
ब्गया धाम में पिंडदान करने से 108 कुल और सात पीढियों तक का उद्धार हो जाता है। विश्व में पितरों की मुक्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ तीर्थस्थल माना गया है। वैसे तो पूरे साल गयाजी में पिंडदान किया जाता है लेकिन पितरों के लिए विशेष पक्ष यानि पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने का अलग महत्व शास्त्रों में बताया गया है। पितृपक्ष प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अनन्त चतुदर्शी के दिन से प्रारम्भ होता है जो अश्विन मास की आमावस्या तिथि को समाप्त होता है। लोकमान्यता है कि गयाजी में श्राद्ध कर्मकांड सृष्टि के रचना काल से शुरू है। वायुपुराण, अग्निपुराण तथा रूढ पुराण में गया तीर्थ का वर्णन है। सृष्टि रचियता स्वयं भगवान ब्रह्मा ने पृथ्वी पर आकर फल्गु नदी में फिर प्रेतशिला में पिंडदान किया था। त्रेता युग में भी भगवान श्रीराम भी अपने पिता राजा दशरथ के मरणोपरांत फल्गु नदी के तट पर श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान, कर्मकांड को कर पितृऋण से मुक्त हुए थे।
पिंडदान पूरे साल किया जा सकता है लेकिन गया श्राद्ध या गया पिंडदान शुभ 17 दिन पितृ पक्ष मेला या 7 दिन, 5 दिन, 3 दिन, 1 दिन या कृष्ण पक्ष के साथ किसी भी महीने में अमावस्या करना बेहतर है। 17 दिनों का पितृपक्ष श्राद्ध या पितृपक्ष मेला, दिवंगत पूर्वजों या परिवार के किसी भी दिवंगत सदस्य को अर्पण करने के लिए सबसे शुभ दिन माना जाता है। यह शुभ 18 दिन हर साल सितंबर या अक्टूबर के महीने में आता है। 56 वेदिया हैं जहां गेहूं और जई के आटे और सूखे दूध, खोवा आदि के उपयोग के साथ पिंड दान किया जाता है। वर्तमान में विष्णु मंदिर, अक्षयवट, फाल्गु और पुनपुन नदी, रामकुंड, सीताकुंड, ब्रह्म मंगलपुरी, कागबली में पिंडदान किया जाता है।
श्राद्ध की मूल कल्पना वैदिक दर्शन के कर्मवाद और पुनर्जन्मवाद पर आधारित है। कहा गया है कि आत्मा अमर है, जिसका नाश नहीं होता। श्राद्ध का अर्थ अपने देवताओं, पितरों और वंश के प्रति श्रद्धा प्रकट करना होता है। मान्यता है कि जो लोग अपना शरीर छोड़ जाते हैं, वे किसी भी लोक में या किसी भी रूप में हों, श्राद्ध पखवाड़े में पृथ्वी पर आते हैं और श्राद्ध व तर्पण से तृप्त होते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है। यूं तो देश के कई स्थानों में पिंडदान किया जाता है, परंतु बिहार के फल्गु तट पर बसे गया में पिंडदान का बहुत महत्व है।
At Gaya ji pind dan and tirth sthal, we strive to provide a welcoming and inclusive environment for people of all faiths and backgrounds. Our community is focused on promoting love, compassion, and understanding, and we believe that these values are at the core of all major religions. Whether you are looking for a place to worship, to connect with others who share your beliefs, or simply to learn more about different religious traditions, we are here to support you. We offer a variety of programs and services designed to meet the needs of our diverse community, and we would love to have you join us.
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Vishnupad temple, Vishnupad Road, Chand Chaura, Gaya, Bihar, India
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